Afrika Abhiyan
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अफ्रिका अभियान
कुछ पल चुप रहने के बाद माणिकबाबू कुछ सोचते हुए बोले, “बिमलबाबू, इस बारे में तो एक बार भी मैंने नहीं सोचा! …हाँ, आप ठीक कह रहे हैं, मेरे घर में एक मूल्यवान चीज तो है! चाहने से मैं राजाओं का ऐश्वर्य हासिल कर सकता हूँ।”
“इसका मतलब?”
“तो फिर शुरू से ही बताता हूँ। मेरे पिताजी के दो भाई थे। मँझले चाचा का नाम सुरेनबाबू और छोटे चाचा का नाम माखनबाबू था। बीते विश्वयुद्ध के समय मेरे दोनों ही चाचा फौज में भर्ती होकर अफ्रिका गये थे। फिर उनकी कोई खबर नहीं आयी। आज से तीन महीने पहले जंजीबार से अचानक मँझले चाचा की एक लम्बी-चौड़ी चिट्ठी मिली। चिट्ठी की बातों का जो सारांश था, वह मैं मँझले चाचा के ही शब्दों में आपको संक्षेप में बताता हूँ:
‘प्रिय माणिक,
‘मैं अभी मृत्युशैया पर हूँ, मेरे बचने की कोई आशा नहीं है। इतने दिनों तक मैं तुम लोगों की कोई खबर नहीं ले पाया, न ही अपनी कोई खबर दे पाया। कारण यह है कि अब तक अफ्रिका के ऐसे इलाकों में मैं तैनात था, जहाँ से समाचार भेजने का कोई उपाय नहीं था।
‘अभी यह पत्र मैं तुम्हें क्यों लिख रहा हूँ- वह सुनो। ईस्ट-अफ्रिका में टांगानिका झील के पास एक पहाड़ की गुफा में मैंने अगाध ऐश्वर्य खोज निकाला है। इतना बड़ा खजाना देखकर बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं का भी सिर चकरा जायेगा।…
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