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Hindi Ebooks for the Young

Bengali literature is an amazing treasure trove that’s not well-known beyond a few names to the rest of India, such as Tagore and Ray. In truth, the body of work of many Bengali writers is so vast and rich that these novels, stories, poems, and collections rival world literature in all aspects from complexity to literary precision. In a humble attempt to bring to the Hindi-speaking world this treasure, I have started translating works from Bengali writers and authors who deserve to be known cross-country, while ensuring the highest quality and accuracy so that the emotions delivered are as the original author intended. In the meanwhile, I have also written a book of my own on Netaji Subhash Chandra Bose, chronicling what happened to him in the years 1941-45.

  • All ebooks here have a free preview on their product page.
  • All the books I’ve chosen for translation are for the young & teenagers of India.
  • After purchasing and making an account, you have lifelong access to the ebook from your JagPrabha dashboard.
  • I’m in the process of translating many other novels, series, and collections.

हेमेन्द्र कुमार राय

बँगला में किशोर-साहित्य के एक लोकप्रिय कथाकार। बाल-किशोरों के लिए सैकड़ों कहानियों एवं लघु उपन्यासों की रचना की- बड़ों के लिए भी बहुत कुछ लिखा। 1930 से 1960 के दशकों में उनकी कहानियों के बिना बाल-किशोर पत्रिकाएं अधूरी-सी लगती थीं। मुख्यरूप से उन्होंने दुस्साहसिक (Adventure), जासूसी (Detective) और परालौकिक (Supernatural), कहानियाँ लिखी हैं। कहानियों में रहस्य (Mystery), रोमांच (Thrill) और भय (Horror) का ऐसा पुट होता है कि दम साधकर कहानियों को पढ़ना पड़ता है। कुछ कहानियाँ खजाने की खोज (Treasure hunt) और वैज्ञानिक कपोल-कल्पना (Science-fiction) पर भी आधारित हैं। उनकी रची ‘कुमार-बिमल’ और ‘जयन्त-माणिक’ शृंखलाएं अपने समय में बहुत लोकप्रिय हुई थीं- पहली दुस्साहसिक कहानियों की तथा दूसरी जासूसी कहानियों की शृंखला है। उनकी रची परालौकिक कहानियों को पढ़ने का अलग ही रोमांच है।



नेताजी सुभाष की गाथा: 1941 से 1945 तक, और उसके बाद … भारतीय युवाओं के लिए।


“बनफूल”

“Banaphool” (Balai Chand Mukhopadhyay) के रचना-भण्डार में 14 नाटक, 60 उपन्यास, सैकड़ों कहानियाँ, हजारों कविताएं, अनगिनत लेख, कई एकांकियाँ, संस्मरण और एक आत्मकथा शामिल हैं


बँगला में चिड़ियों के डैना को ‘डाना’ कहते हैं। “बनफूल” रचित यह “डाना” उपन्यास पक्षी-परिचय पर आधारित है।


शरदिन्दु बन्द्योपाध्याय—ब्योमकेश बक्शी

बँगला साहित्य में जासूसी कहानियों को सम्मानजनक स्थान दिलाने वाले लेखक। इनके द्वारा गढ़े गये चरित्र ब्योमकेश बक्शी के नाम से शायद ही कोई अपरिचित हो। ब्योमकेश खुद को ‘जासूस’ नहीं, ‘सत्यान्वेषी’ कहते थे। वे अपनी आँखों से महीन पर्यवेक्षण तथा दिमाग से गहन विश्लेषण करके जटिल से जटिल मामलों की तह तक पहुँच जाते थे।

शरदिन्दु बन्द्योपाध्याय ने यूँ तो बँगला में काफी कुछ लिखा है, कई किरदार गढ़े हैं, वे फिल्मों में पटकथा लेखक भी रहे हैं, पर वे ब्योमकेश बक्शी के प्रणेता के रूप में ही जाने जाते हैं। उन्होंने ब्योमकेश बक्शी की कुल 32 कहानियाँ (33वीं कहानी अधूरी है) लिखी हैं, जिनमें से ज्यादातर पर फिल्में या टीवी धारावाहिक बन चुके हैं। 1932 से 1936 तक उन्होंने ब्योमकेश की 10 कहानियाँ लिखीं, इसके बाद वे फिल्मों में व्यस्त रहे, फिर 1951 से 1970 के बीच बाकी कहानियाँ लिखीं।



विभूतिभूषण बन्द्योपाध्याय

विभूतिभूषण बन्द्योपाध्याय की गिनती बँगला साहित्य के महान लेखकों में होती है। उन्होंने ग्राम्य-बाँग्ला से चरित्रों को लेकर कई कालजयी उपन्यास लिखे हैं। साथ ही, उन्होंने किशोरों के लिए कुछ साहसिक गाथाएं और कुछ परालौकिक कहानियाँ भी लिखी हैं। ‘चाँदेर पाहाड़,’ ‘सुन्दरबने सात बत्सर’ और ‘हीरा माणिक ज्वले’ उनकी साहसिक गाथाएं हैं और ‘तारानाथ तांत्रिकेर गल्प,‘ ‘बिरजा होम ओ तार बाधा’ और ‘अभिशप्त’ इत्यादि उनकी परालौकिक कहानियाँ हैं।

अनुवादक ने इन सबका हिन्दी अनुवाद कर लिया है, गुरूग्राम के एक प्रकाशक ‘साहित्य विमर्श’ ने इन सभी अनुवादों को पसन्द किया है और एक-एक कर वे इन्हें (बेशक, मुद्रित पुस्तक के रूप में) प्रकाशित भी कर रहे हैं। दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, बाकी दो निकट भविष्य में प्रकाशित होंगी। जाहिर है कि निम्न आवरण चित्रों पर क्लिक करने पर आपको ‘साहित्य विमर्श’ की वेबसाइट पर ले जाया जायेगा, जहाँ से आप इन्हें (मुद्रित पुस्तक) खरीद सकते हैं:-


वीरान टापू का खजाना (शीघ्र प्रकाश्य)

तारानाथ तांत्रिक एवं अन्य परालौकिक कहानियाँ (शीघ्र प्रकाश्य)


साक्षात्कार

जयदीप शेखर  खुद को रेखाचित्र, छायाचित्र, शब्दचित्र का एक शौकिया चितेरा कहते हैं लेकिन उनके पाठक उनको बांग्ला से हिंदी में किए गए उनके अनुवादों के माध्यम से जानते हैं। बांग्ला से किशोर साहित्य वह हिंदी में अनूदित करते रहे हैं और उनके इन अनुवादों को सराहा भी गया है। 

‘एक बुक जर्नल’ ने ईमेल के माध्यम से उनसे कुछ दिनों पूर्व एक बातचीत की है। इस बातचीत में हमने उनके, उनके अनुवादों के और अनुवादों से इतर उनके अन्य कार्यों के विषय में जानने की कोशिश की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

—विकास नैनवाल ‘अंजान’ (ekbookjournal.com)

अनुवादक जयदीप शेखर से एक बातचीत


Works in progress

Sharadindu Bandyopadhyay
Sharadindu Bandyopadhyay (writer of Byomkesh Bakshi)

शरदिन्दु बन्द्योपाध्याय (1899-1970) ने बँगला में काफी कुछ लिखा है, कई किरदार गढ़े हैं और वे फिल्मों में पटकथा लेखक भी रहे हैं, पर वे जाने जाते हैं प्रसिद्ध जासूस ब्योमकेश बक्शी के रचयिता के रूप में।  ब्योमकेश बक्शी खुद को जासूस नहीं, बल्कि ‘सत्यान्वेषी’ कहते थे और दिमागी कसरत के बल पर रहस्यों पर से पर्दा उठाते थे। शरदिन्दु बन्द्योपाध्याय ने ब्योमकेश बक्शी की कुल 32 कहानियाँ (33वीं कहानी अधूरी है) लिखी हैं, जिनमें से ज्यादातर पर फिल्में या टीवी धारावाहिक बन चुके हैं। (1932 से 1936 तक उन्होंने ब्योमकेश की 10 कहानियाँ लिखीं, इसके बाद वे फिल्मों में व्यस्त रहे, फिर 1951 से 1970 के बीच बाकी कहानियाँ लिखीं।) जानकारी मिलती है कि उनकी दर्जन भर कहानियाँ ऐसी हैं, जो अब तक हिन्दी में सामने नहीं आयी हैं। निकट भविष्य में ब्योमकेश बक्शी की ऐसी ही कहानियाँ इस वेबसाइट पर उपलब्ध हो सकती हैं।

पुनश्च: शरदिन्दु बन्द्योपाध्याय की रचनाओं के स्वत्वाधिकार श्री प्रबीर चक्रवर्ती के पास है, उनसे सम्पर्क न हो पाने या अनुमति प्राप्त न हो पाने की दशा में ये अनुवाद 2030 के बाद ही प्रकाशित हो पायेंगे।


Shanku Maharaj
Shanku Maharaj

शंकु महाराज (1931-2004) बँगला के प्रसिद्ध यात्रा-वृतान्त लेखक हैं। उन्होंने 40 से ज्यादा यात्रा-वृतान्त लिखे हैं, जिनमें से हिमालयी क्षेत्रों के यात्रा-वृतान्तों की संख्या 15 है। उनके कई यात्रा-वृतान्तों को बँगला साहित्य में कालजयी कृति होने का सम्मान प्राप्त है। उनकी पहली रचना ‘विगलित करूणा जाह्नवी जमुना’ सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, जो यमुनोत्री-गंगोत्री-गोमुख यात्रा पर आधारित है और जो एक रोचक उपन्यास-जैसा है। कोशिश होगी कि उनकी कम-से-कम यह प्रसिद्ध रचना हिन्दी में यहाँ- इस वेबसाइट पर- उपलब्ध हो। शंकु महाराज का वास्तविक नाम ज्योतिर्मय घोषदस्तीदार था।


Nimai Bhattacharya
Nimai Bhattacharya

निमाई भट्टाचार्य (1931-2020) ने बँगला में 150 उपन्यास लिखे हैं। उनका एक प्रसिद्ध उपन्यास है- ‘मेम साहब।‘ इसका हिन्दी अनुवाद हालाँकि हो चुका है, पर सम्भ्व है भविष्य में इस वेबसाइट पर इस उपन्यास का एक और हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जाय। इसी प्रकार, उनकी एक और रचना (आत्मकथात्मक) ‘रिटायर्ड’ का भी हिन्दी अनुवाद कभी यहाँ प्रस्तुत किया जा सकता है।   


Satyajit Ray

सत्यजीत राय (1921-1992) को हिन्दीभाषी क्षेत्रों में एक महान फिल्मकार के रूप में जाना जाता है, लेकिन वास्तव में वे महान फिल्मकार के साथ-साथ महान चित्रकार, ग्राफिक-डिजायनर और कथाकार भी थे। एक लेखक के रूप में उन्होंने बँगला में कहानियाँ तो बहुत सारी रची हैं, लेकिन वे जाने जाते हैं मशहूर जासूस प्रदोष चन्द्र मित्र (मित्र को मित्तिर या मिटर भी कहा जाता है) के किरदार के प्रणेता के रूप में, जिनका पुकार नाम “फेलू’दा” (फेलू भैया) है। फेलू’दा एक हरफनमौला जासूस हैं- दुनियाभर के विषयों के जानकार, दिमाग से सजग और शरीर से चुस्त-दुरुस्त। इनके कुल 35 कारनामों की कहानियाँ (36वीं कहानी अधूरी है) सत्यजीत राय ने (1965 से 1991 के बीच) लिखी हैं, जिनमें से 18 को कहानियों और 17 को लघु उपन्यास की श्रेणी में रखा जा सकता है।

सत्यजीत राय ने एक और किरदार गढ़ा है- प्रोफेसर शंकु (त्रिलोकेश्वर शंकु) का, जो एक वैज्ञानिक एवं आविष्कारक हैं, दुनियाभर के वैज्ञानिकों के साथ मित्रता रखते हैं और उनके साथ दुनियाभर में रोचक, रोमांचक अभियानों में भाग लेते हैं। प्रो. शंकु नियमित रूप से डायरी लिखते हैं और उनकी डायरियों में कुल-मिलाकर 38 अभियानों का वर्णन है। सत्यजीत राय ने ये कहानियाँ 1961 से 1990 के बीच लिखी हैं।

इसके अलावे सत्यजीत राय ने 26 रहस्यकथाएं लिखी हैं। (सम्भवतः रहस्यकथाओं की संख्या और ज्यादा है।) रहस्यकथाओं की दुनिया में जितने तरह के रहस्य हो सकते हैं- हर प्रकार के रहस्य को सत्यजीत राय ने छुआ है।

फेलू’दा शृंखला की कहानियों के हिन्दी अनुवाद का अधिकार शायद न मिले। श्री सन्दीप राय (सत्यजीत राय के सुपुत्र) का स्पष्ट कहना है कि फेलू’दा शृंखला के हिन्दी अनुवाद का अधिकार किसी (प्रकाशक) को दिया जा चुका है और दुबारा किसी को यह अधिकार देने के इच्छुक वे नहीं है। (जिन प्रकाशक ने यह अधिकार हासिल किया है, वे इस शृंखला पर काम कर रहे हैं कि नहीं- पता नहीं।) ऐसे में इस अनुवादक के पास सिर्फ यही रास्ता बचा है कि वे फेलू’दा शृंखला की कहानियों का हिन्दी अनुवाद धीरे-धीरे करते रहें और साल 2052 के बाद ही उन्हें प्रकाशित करें! अब तक फेलू’दा के 8 कारनामों का हिन्दी अनुवाद (1. फेलू’दा दार्जिलिंग में, 2. बादशाही अँगूठी, 3. कैलाश चौधरी का रत्न, 4. सियार-देवता रहस्य, 5. गैंगटोक में गड़बड़झाला, 6. सोने का किला, 7. ब्रीफकेस रहस्य और 8. चाबी रहस्य) पूरा हो चुका है।

इसी प्रकार, प्रो. शंकु के 7 अभियानों का अनुवाद (1. अन्तरिक्षयात्री की डायरी, 2. प्रो. शंकु और मिस्र का आतंक, 3. प्रो. शंकु और हड्डी, 4. प्रो. शंकु और मैकाओ, 5. प्रो. शंकु और अद्भुत पुतले और 6. प्रो. शंकु और गोलक रहस्य) भी पूरा हो चुका है। साथ ही, 3 रहस्यकथाओं का अनुवाद (1. हिस्स, 2. विषफूल और 3. तीसरी आँख) भी हो चुका है।

अगर उपर्युक्त अनुवादों में किसी की रुचि हो, तो वे व्यक्तिगत रूप से अनुवादक के साथ सम्पर्क ([email protected]) कर सकते हैं।