Pretatma ka Pratishodh
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प्रेतात्मा का प्रतिशोध
प्रमोद धीरे-धीरे उठकर बैठ गया। इसके बाद धीरे-धीरे ही वह बोला, “मैंने अपने बारे में तुम्हें क्यों नहीं बताया- यह तुम जानते हो?”
“मैं कैसे जान जाऊँगा- बोलो? मैं कोई ज्योतिषी तो हूँ नहीं।”
“मेरे जीवन की कहानी अलौकिक है।”
“अलौकिक?”
“अलौकिक या अपार्थिव। सुनकर तुम विश्वास नहीं करोगे।”
“तुम मेरे सबसे करीबी दोस्त हो और मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं करूँगा?”
“केवल अलौकिक ही नहीं, मेरे जीवन की कहानी भयंकर है! रोमांच से तुम्हारे रोंगटे खड़े हो जायेंगे! हो सकता है कि तुम अन्त तक सुन ही न पाओ!”
प्रफुल्ल हक्का-बक्का रहकर कुछ पलों तक प्रमोद के चेहरे की तरफ देखता रह गया। फिर वह उठकर हँसते हुए बोला, “दोस्त, जीवन बहुत ही एकरस है, लेकिन तुम्हारी बातों में एडवेंचर की गन्ध है। रोमांच से रोंगटे खड़े हो जाना मुझे पसन्द है। इस पार्थिव जगत में बैठकर ही किसी अपार्थिव जगत का अनुभव हो जाय- लगता है, यह भी अच्छा ही लगेगा! अच्छी बात है, शुरू करो अपनी जीवन-कहानी!”
दूधिया चाँदनी में नहायी नदी के बहाव में नाव अपने-आप बही जा रही थी। एकाएक हवा का बहना ठहर गया, जंगल से आती मर्मर ध्वनि थम गयी; नदी का कलकल भी क्षीण हो गया और इस निस्तब्धता के बीच कहीं से किसी रक्तपिपासु व्याघ्र की भयंकर गर्जना सुनायी पड़ी।
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