जगप्रभा ई-लाइब्रेरी योजना
इस योजना के तहत आप ₹100/- का भुगतान करके अपनी पसन्द की 10 ई-पुस्तकें 3 महीनों के लिए ‘पढ़ने के लिए’ पा सकते हैं।
- नीचे दिये गये QR कोड पर रु. 100/- का भुगतान करें।
- ई-मेल आई’डी jagprabha.bhw@gmail.com पर अपनी पसन्द की 10 ई-पुस्तकों के नाम लिखकर भेज दें।
- वे 10 ई-पुस्तकें आपकी ई-मेल आई’डी के साथ 3 महीनों के लिए साझा कर दी जायेंगी।
- इन 3 महीनों में आप किसी भी समय किसी भी डिवाइस पर उन 10 ई-पुस्तकों को पढ़ सकेंगे।
इस योजना के तहत ई-पुस्तकें केवल ‘पढ़ने के लिए’ होंगी, उन्हें डाउनलोड अथवा प्रिण्ट करने का विकल्प नहीं दिया जायेगा।

Adventure (Kumar-Bimal Series)
Detective (Jayant-Manik Series)
Horror (Long Stories)
Horror (Short Stories)
Adventure (Printed Books)
These stories (novelettes) have been published by ‘Sahitya Vimarsh’ and are presently available on their website as printed books. These are external links.

चाँद का पहाड़ (External link ⧉)

सुन्दरबन में सात साल (External link ⧉)

वीरान टापू का खजाना (शीघ्र प्रकाश्य)

तारानाथ तांत्रिक एवं अन्य परालौकिक कहानियाँ (शीघ्र प्रकाश्य)
Featured (Naz-E-Hind Subhash)
नेताजी सुभाष की गाथा: 1941 से 1945 तक, और उसके बाद … भारतीय युवाओं के लिए।
Naz-E-Hind Subhash
नाज़-ए-हिन्द सुभाष
नेताजी सुभाष 17 जनवरी 1941 की रात भारत से निकले थे और 18 अगस्त 1945 के दिन अन्तर्धान हुए थे। इन दो तिथियों के बीच का कालखण्ड प्रायः चार वर्षों का है। इस दौरान नेताजी से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े बहुत-से ऐसे घटनाक्रम हैं, जिनके बारे में हम आम भारतीय- खास तौर पर देश की किशोर एवं युवा पीढ़ी वाले- बहुत कम जानते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की रचना की गयी है।
1941 से पहले के (उनसे जुड़े) कुछ घटनाक्रमों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है- भूमिका के तौर पर। इसके विपरीत, 1945 के बाद के घटनाक्रमों को विस्तार दिया गया है। साथ ही, कुछ ‘सम्भावित’ घटनाक्रमों का भी जिक्र किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि पाठकगण उपलब्ध तथ्यों, साक्ष्यों, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं सम्भावनाओं को जानने के बाद स्वयं विश्लेषण करते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश करें कि आखिर नेताजी का क्या हुआ होगा।
पुस्तक की भाषा शैली ऐसी रखी गयी है कि पढ़ते समय लगे कि घटनाएं हमारे समय में घट रही हैं- ऐसा न लगे कि हम सुदूर इतिहास की बातों को जान रहे हैं। कहीं-कहीं ‘रिपोर्ताज’-जैसी शैली का उपयोग किया गया है। ऐसा किशोर एवं युवा वर्ग के पाठक-पाठिकाओं को ध्यान में रखकर किया गया है, जो ‘थ्रिलर’ पढ़ना पसन्द करते हैं। वैसे, पुस्तक सबके लिए है।