Yaksha ka Khajana
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यक्ष का खजाना
माँ को बिना बताये भागकर बाहर गया। देखा, नाली में खोपड़ी तिरछी पड़ी हुई थी। ध्यान से उसकी जाँच करने के लिए मैंने उसे उठा लिया। खोपड़ी के एक तरफ गहरा काला रंग लगा हुआ था, लेकिन नाली का पानी लगने से बीच-बीच में रंग हट गया था- और जहाँ-जहाँ रंग नहीं था, वहीं खुदे हुए कुछ अंक दिखायी पड़ रहे थे! उत्सुकतावश मैं खोपड़ी को फिर घर ले आया। साबुन लगाकर पानी से साफ करते ही खोपड़ी पर से सारा काला रंग हट गया। फिर मैंने आश्चर्य के साथ देखा कि खोपड़ी के उस हिस्से पर बहुत सारे अंक खुदे हुए थे।
अंक निम्न प्रकार से थेः
‘27(6) 27(7) । 41(11) 34(3) 43 । 17(7) । 37(4) 23(7) । 48 43 44 । 37(7) 31.1 । 17(4) । 24 31.1 । 48(7) । 37/6 43 39 । 41(7) । 34 48 । 19 24 । 39 31.2 17 43 । 43/6 17(9) । 34(2) (3)49 36(7) । 2 28 । 19 24 । 37 43 । 39(5) {34 35} 34(7) 45 । 39(2)(11) 47(7) । 23 49 । 19 24 । 37 43 । 32(4) 36 । 37 {32 33} 43 । 5 48 17(7) । 36(4) 22(7) । 48(2) 32 । 49(2) 33। 24 41(4) 36 । 18(9) 34 36(7) । 37 43 । 43(2) {48 32}(2) । 41(3) 44(7) 19(2) ।’
इन विचित्र अंकों का मतलब क्या था? बहुत सोचा, लेकिन इनका सिर-पैर कुछ समझ नहीं पाया।
एकाएक दादाजी की पॉकेट-बुक की याद आयी। वह भी तो इस खोपड़ी के साथ थी, क्या उसमें इस रहस्य का कोई समुचित उत्तर नहीं होगा?
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