MISHMI LOGON KA KAWACH

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मिश्मी लोगों का कवच

बहुत कम लोगों को पता होगा कि महान बँगला लेखक विभूतिभूषण बन्द्योपाध्याय ने बाल-किशोरों के लिए एक जासूसी कहानी भी लिखी है। कहानी में रहस्य भी है- पूर्वोत्तर भारत की मिश्मी जनजाति द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले एक कवच को लेकर। यहाँ उसी जासूसी कहानी का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है।

कहानी से:

श्रीगोपाल के चेहरे को देखकर लगा कि वे जरा आश्चर्य में हैं। किसी के दातुन तोड़ने को लेकर मेरी माथापच्ची का कारण उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

वे हँसुआ लाने के लिए पीछे मुड़े, लेकिन दो-चार कदम चलकर ठिठक गये। फिर घास के बीच से कोई चीज हाथों में उठाकर वे बोले, “यह क्या है?”

मैंने उनके हाथों से उस चीज को लेकर देखा— वह लकड़ी की एक गोलाकार चकती थी। रोशनी में लाकर अच्छे-से उसे देखा, तो उसमें खुदी हुई नक्काशी नजर आयी। एक फूल और फूल के नीचे सियार-जैसे एक जन्तु की मुखाकृति।

श्रीगोपाल ने पूछा, “यह क्या है— बताईए तो?”

मैं नहीं समझ पाया था। वह चीज क्या हो सकती थी— इसका कोई अनुमान भी नहीं लगा पाया।

उस चीज को साथ लेकर वहाँ से चला आया। आने से पहले सहोरा की उस तोड़ी हुई टहनी को काटकर रख लिया।

 

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Description

MISHMI LOGON KA KAWACH (The Shield of the Mishmi People (Tribals))

Hindi translation of the Bengali detective story ‘Mismider Kawach’

Original Author: Bibhutibhushan Bandyopadhyay (1894-1950)

Format: PDF | Pages: 64 | Size: 790 KB | Dimension: 8.5″x5.5″

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