छत्रपति का कटार
कमरे के बीच में शीशे के ढक्कन वाला एक बड़ा सन्दूक रखा हुआ था। उसकी ओर उँगली दिखाकर जयन्त ने पूछा, “वह क्या है?”
“शो-केस।”
“क्या है उसमें?”
“पुराने जमाने के अस्त्र-शस्त्र जमा करने का शौक था राजा का। उसमें वही सब सजे हुए हैं।”
“देखने लायक संग्रह है यह तो!” जयन्त कौतूहल के साथ सन्दूक के सामने जा खड़ा हुआ। फिर झुककर वह निरीक्षण करने लगा।
प्राचीन एवं मध्य युग के सभी प्रकार के अस्त्र थे— तीर-धनुष, तलवार, चाकू-कटार, खड़ग, फरसा, बरछा और भी बहुत कुछ! प्रत्येक अस्त्र के साथ तिरंगे गुलाबी फीते से एक-एक कार्ड बँधा हुआ था— कार्ड पर दो-एक पंक्तियों में अस्त्र का संक्षिप्त इतिहास लिखा हुआ था।
जयन्त का ध्यान गया, एक जगह फीते से जुड़े कार्ड पर लिखा हुआ था— ‘छत्रपति का कटार’, लेकिन उसके साथ कोई अस्त्र नहीं था। उसने पवित्रबाबू का ध्यान इस तरफ खींचा।
पवित्रबाबू मानो आसमान से गिरे। आश्चर्य से आँखें फाड़कर वे बोले, “यह क्या मामला है! घर में हत्याकाण्ड के एक दिन पहले भी मैंने देखा था कटार यहीं था! कहाँ गया वह? किसने चोरी की?”
जयन्त ने पूछा, “यह ‘छत्रपति का कटार’ का मामला क्या है?”
“कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी इस कटार का इस्तेमाल करते थे। इसलिए यह नाम रखा गया था।”
अब तक सुन्दरबाबू जाग्रत हो गये। बोले, “हुम्म, हुम्म! बहुत ही सन्देहजनक, बहुत ही सन्देहजनक! …..आपको पक्का ध्यान है कि हत्याकाण्ड के एक दिन पहले तक कटार यहीं पर था?”
पवित्रबाबू बोले, “इसमें कोई सन्देह नहीं है। मुझे अच्छे-से याद है। सौदामिनी देवी का हुक्म था कि उनके पिता द्वारा बड़े जतन के साथ जमा की गयी किताबों को कीड़े-मकोड़े न बर्बाद करें, इसलिए बेयरों की मदद से मैं सप्ताह में एक दिन लाइब्रेरी वाले कमरे की साफ-सफाई करवाऊँ। देख रहे हैं न, इस महल के दूसरे कमरों की तरह इस कमरे की दुर्दशा नहीं हुई है।”
“हुम्म! तुम्हारा क्या ख्याल है जयन्त?”
“मेरा भी वही सोचना है— कटार का चोरी जाना सन्देहजनक है।”
“सौदामिनी देवी की हत्या भी धारदार हथियार से हुई है।”
“हाँ सुन्दरबाबू। …..बाहर के किसी चोर ने यह कटार नहीं चुराया है।”
पवित्रबाबू भयभीत होकर बोल उठे, “आप लोग क्या कह रहे हैं— मुझे समझ में नहीं आ रहा। इस घर का भला कौन सौदामिनी देवी की हत्या कर सकता है? और करेगा भी क्यों? हम सभी तो उनके आश्रित हैं। जिस डाल पर बैठे हैं, उसे ही कोई काटता है? नहीं जयन्तबाबू, मुझे माफ कीजिएगा….. मेरा सिर घूम रहा है, मैं खड़ा नहीं रह पा रहा….. मैं चला….. मैं चला!” कहकर लड़खड़ाते कदमों के साथ वे कमरे से निकल गये।
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