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जगप्रभा की ई-पुस्तकों का फिर से मूल्य-निर्धारण

जगप्रभा की ई-पुस्तकों का फिर से मूल्य-निर्धारण किया गया है। पहले पृष्ठ-संख्या के आधार पर मूल्य-निर्धारण किया गया था, इस बार कहानियों की शब्द-संख्या को आधार बनाया गया है।

दूसरी बात, वेबसाइट पर ई-पुस्तकों को उनके निर्धारित मूल्य पर ही उपलब्ध रखा गया है (कुछ ही ई-पुस्तकें पहले की तरह 30/- पर उपलब्ध हैं।) निर्धारित मूल्य पर ई-पुस्तक खरीदने के बाद पाठक कभी भी, किसी भी डिवाइस पर “My Account” टैब पर जाकर खरीदी गयी ई-पुस्तक को (PDF) “डाउनलोड” कर सकेंगे।

जो पाठक “बिना डाउनलोड” किये ई-पुस्तकें पढ़ना चाहें, उनके लिए 30/- प्रति ई-पुस्तक का शुल्क बरकरार रखा जा रहा है। वेबसाइट के निचले हिस्से में इसकी जानकारी उपलब्ध है।

इति।

-जयदीप, 26 जून 2024  

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फिलहाल ‘बनफूल’ की कहानियाँ…

पिछले कुछ समय से जगप्रभा की वेबसाइट पर कोई नयी eBook नहीं आ रही है।

इसका कारण यह है कि फिलहाल मैं ‘बनफूल’ की 30 कहानियों का अनुवाद कर रहा हूँ।

‘बनफूल’ की 70 कहानियों का अनुवाद किया हुआ है, 30 और कहानियों का अनुवाद पूरा हो जाने के बाद— मेरी इच्छा है कि 100 कहानियों के इस संग्रह को हिन्दी का कोई बड़ा प्रकाशक प्रकाशित करे।

एक नामचीन प्रकाशक से मैंने सम्पर्क किया है, नमूने के तौर पर 5 अनूदित कहानियाँ उन्होंने मँगवायी भी है। आगे देखा जाय…

-जयदीप, 12.6.2024

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तारिणी चाचा के लोमहर्षक किस्से

तारिणी चाचा एक किस्सागो हैं। चार-बच्चों के एक समूह को वे अक्सर किस्से सुनाते हैं। उनका कहना है कि कहानी कहने के आर्ट के चलते थोड़ी-बहुत कल्पना का इस्तेमाल करना पड़ता है, वर्ना सारे किस्से सच्चे हैं। बच्चों को जानकारी मिलती है कि तरिणी चाचा ने काम-धन्धे के सिलसिले में सारा भारतवर्ष छान मारा है और इस दौरान विभिन्न प्रकार के अनुभव उन्होंने प्राप्त किये हैं।

तारिणी चाचा के किस्सों में रहस्य-रोमांच भरपूर होता है, किस्सों के शीर्षक से ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है- डुमनीगढ़ का आदमखोर, कॉन्वे कैसल की प्रेतात्मा, तारिणी चाचा और बेताल, लखनऊ का द्वन्दयुद्ध (Duel), धूमलगढ़ का हॉण्टिंग लॉज, तारिणी और इन्द्रजाल, नरिस साहब का बँगला, इत्यादि। दर्जन भर से ज्यादा किस्से हैं उनके।

तारिणी चाचा का यह किरदार सत्यजीत राय ने गढ़ा है। बेशक, यह किरदार फेलू’दा और प्रो. शंकु जितना लोकप्रिय नहीं है, लेकिन ये किस्से रहस्य-रोमांच के मामले में कहीं से उन्नीस नहीं हैं।

योजना है कि तारिणी चाचा के सारे किस्सों का धीरे-धीरे अनुवाद कर लेने के बाद किसी प्रकाशक से सम्पर्क किया जायेगा। चूँकि सत्यजीत राय की रचनाएं कॉपीराइट के दायरे में आती हैं, इसलिए जगप्रभा की वेबसाइट पर इन्हें बिक्री के लिए नहीं रखा जा सकता। वेबसाइट के अन्तिम हिस्से में ऐसे (कॉपीराइट वाले) अनुवादों की एक सूची है, उसी में इन किस्सों के अनुवादों को जोड़ा जायेगा। इच्छुक पाठक/प्रकाशक इन्हें पढ़ने/प्रकाशित करने (जरूरी अनुमति हासिल करते हुए) के लिए [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं।

आज तारिणी चाचा का पहला किस्सा “डुमनीगढ़ का आदमखोर” इस सूची में शामिल किया जा रहा है।

-जयदीप

01 फरवरी 2024   

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‘वीरान टापू का खजाना’- ‘साहित्य विमर्श’ पर

जैसा कि बताया जा चुका है, ‘जगप्रभा’ की कुछ ई’पुस्तकों को ‘साहित्य विमर्श’ द्वारा मुद्रित पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है; उसी कड़ी में ‘वीरान टापू का खजाना’ उनकी ओर से प्रकाशित हो चुका है।

यह बिभूतिभूषण बन्द्योपध्याय द्वारा रची एक साहसिक गाथा है। बँगला लेखक बिभूतिभूषण बन्द्योपध्याय के प्रति हम हिन्दीभाषियों की आम धारणा क्या है? सामाजिक उपन्यासों के एक लेखक की। हम बस उन्हें “पथेर पाँचाली” के लेखक के रूप में जानते हैं; लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने उच्चस्तरीय साहसिक गाथाएं और परालौकिक कहानियाँ भी लिखी हैं। उन सबका हिन्दी अनुवाद कर हम हिन्दीभाषियों के बीच बनी उनकी छवि को एक नया दृष्टिकोण देना चाहते हैं।

साहसिक गाथाओं की “त्रयी” पूरी हो गयी। पहली गाथा- “चाँद का पहाड़”, दूसरी गाथा- “सुन्दरबन में सात साल” और अब तीसरी साहसिक गाथा- “वीरान टापू का खजाना” भी प्रकाशित हो गयी। ये विश्वस्तरीय साहसिक गाथाएं हैं। किशोरों-नवयुवाओं के लिए must-read हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हिन्दीभाषी अब तक इनसे अनजान थे!

कहानी की पृष्ठभूमि है— सुलू सागर! हममें से कितने परिचित हैं इससे? बहुत कम। बोर्नियो और फिलीपीन्स द्वीपसमूह के बीच यह सागर है। इसके उत्तर में दक्षिणी चीन सागर है और दक्षिण में सुलावेसी सागर। आज से 40-50 साल पहले इसे रहस्यमयी सागर माना जाता था। यहाँ बहुत सारे ऐसे द्वीप हैं, जो घने जंगलों से ढके हुए हैं।

ऐसे ही एक द्वीप में है, 9वीं सदी, या शायद इससे भी पहले की एक नगरी के ध्वंसावशेष और उनके बीच छुपा है एक खजाना। मनीला के जुए के अड्डे के एक अन्धेरे कमरे में मरणासन्न दक्षिण-भारतीय बूढ़ा नाविक नटराजन— जो कभी समुद्री लुटेरा रह चुका होता है— अपनी काँपती आवाज में यह बात जहाज के एक खलासी जमातुल्ला को बताता है। कुछ समय बाद जमातुल्ला कोलकाता में सुशील को यह बात बताता है। सुशील अपने ममेरे भाई सनत और जमातुल्ला को साथ लेकर निकल पड़ता है उस अनजाने टापू की खोज में। दूसरी तरफ, एक गुप्त संगठन है, जो इस ‘पवित्र’ खजाने की रक्षा के लिए मलय “बोलो” (बड़े हँसुए-जैसा हथियार) से किसी का भी सिर धड़ से अलग कर देने के लिए उद्यत रहता है। इस कारण सिंगापुर में वे अपने दल में शामिल करते हैं पूर्व जलदस्यु यार हुसैन को उसके कुछ शागिर्दों के साथ। इन सबको उस टापू तक पहुँचाता है एक अनुभवी चीनी मल्लाह, अपने “जंक” से। “चीनी जंक” से आप परिचित हैं?

कुल-मिलाकर, एक रोमांचक दास्तान। पढ़ा जाय और बिभूतिभूषण-जैसे महान लेखक के सामने नतमस्तक हुआ जाय ऐसी उच्चस्तरीय साहसिक गाथाएं लिखने के लिए!

साहित्य विमर्श पर “वीरान टापू का खजाना”: https://www.sahityavimarsh.in/veeraan-tapu-ka-khazana/

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एच.पी. लवक्राफ्ट

एच.पी. लवक्राफ्ट डरावनी एवं अजीबो-गरीब (horror and weird) कहानियों के प्रसिद्ध अमरीकी लेखक रहे हैं। कहानियाँ तो उनकी बहुत सारी हैं, लेकिन ज्यादातर की शैली एवं विषयवस्तु ऐसी नहीं है कि हिन्दीभाषी किशोर पाठक उन्हें पसन्द कर सकें। फिर भी इच्छा है कि उनकी विश्वप्रसिद्ध कहानी “द कॉल ऑव कथुलू” का हिन्दी अनुवाद किया जाय। किसी ने हिन्दी अनुवाद किया है, लेकिन मुझे पढ़ते वक्त कुछ कमी महसूस हुई— उस कमी को दूर करते हुए हम खुद अनुवाद करना चाहेंगे, ताकि पढ़ते वक्त ऐसा लगे कि हम हिन्दी की कोई मौलिक कहानी पढ़ रहे हैं।

“कथुलू” का अनुवाद करने से पहले अभ्यास के तौर पर उनकी दो अन्य कहानियों का अनुवाद करना हमने तय किया है। इसी फैसले के तहत उनकी कहानी “द कर्स ऑव यिग” का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है।

-जयदीप अगस्त 2023