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विभूतिभूषण के किशोर उपन्यास

विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय (1894-1950) की गिनती बँगला के महान लेखकों में होती है। उनकी रचना ‘पथेर पाँचाली’ (रास्ते का गीत, 1929) एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जिस पर सत्यजीत राय ने विश्वप्रसिद्ध फिल्म (1955) बनायी थी। विभूतिभूषण ने बँगाल के ग्राम्य जीवन से पात्रों को लेकर सामाजिक उपन्यासों की रचना की है, लेकिन किशोरों के मन में साहस का संचार करने के लिए उन्होंने तीन साहसिक (Adventure) उपन्यासों की भी रचना की है- 1. चाँदेर पाहाड़, 2. सुन्दरबने सात बत्सर (इस गाथा की शुरुआत भुवनमोहन राय ने की थी) और 3. हीरा माणिक ज्वले। इसके अलावे उन्होंने सात परालौकिक (Supernatural) कहानियाँ भी लिखी हैं, जिनमें ‘तारानाथ तांत्रिक’ की दो कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।

मैंने उपर्युक्त सभी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद कर लिया है। परालौकिक कहानियों को छोड़ बाकी अनुवादों के कभी ई-बुक भी तैयार किये थे, लेकिन बाद में ‘साहित्य विमर्श’ द्वारा इनमें रुचि दिखाने के बाद मैंने वे सभी ई-बुक हटा लिये हैं और अब ‘साहित्य विमर्श’ एक-एक कर इन अनुवादों को मुद्रित पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर रहा है।

अभी तक निम्न दो पुस्तकें ‘साहित्य विमर्श’ द्वारा प्रकाशित की जा चुकी हैं:-

  1. ‘चाँदेर पाहाड़’ का अनुवाद ‘चाँद का पहाड़’ नाम से। देखने/ खरीदने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।
  2. ‘सुन्दरबने सात बत्सर’ का अनुवाद ‘सुन्दरबन में सात साल’ नाम से। देखने/खरीदने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।

निकट भविष्य में ‘हीरा माणिक ज्वले’ का अनुवाद ‘वीरान टापू का खजाना’ नाम से और परालौकिक कहानियों का संग्रह ‘तारानाथ तांत्रिक एवं अन्य परालौकिक कहानियाँ’ नाम से प्रकाशित हो सकती हैं।

टिप्पणी: मैंने ‘चाँद का पहाड़’ का जो ई-बुक तैयार किया था, उसमें मूल बँगला पुस्तक (1937) में शामिल श्यामल कृष्ण बसु द्वारा बनाये गये 15 चित्रों को भी शामिल किया था। इसी प्रकार, ‘सुन्दरबन में सात साल’ के ई-बुक में मूल बँगला पुस्तक (1952 वाले संस्करण के लिए) के लिए हितेन्द्र मोहन बसु द्वारा बनाये गये 35 चित्रों को शामिल किया था। अफसोस, कि ये चित्र (किसी कारण से) इन अनुवादों के मुद्रित संस्करण में नहीं आ पाये हैं। ‘चाँद का पहाड़’ के परिशिष्ट में मैंने अपनी ओर से कुछ रोचक जानकारियाँ भी दी थीं, जो कहानी की कुछ बातों से जुड़ी थीं।  

इति,

—जयदीप शेखर

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